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आदरणीय अन्ना अंकल,
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि अपनी सरकार मेरी मां जैसी है.
सच कहूँ तो देश के 125 करोड लोगों को पिता समान मानने को मन तो नहीं करता पर लोग एहसास करा ही देते हैं कि वे मेरे पिता समान ही नहीं बल्कि हैं ही मेरे बाप
अंकल जी, आप तो जानते ही हैं कि मेरे पिता कुछ ज्यादा ही मिलनसार हैं इसलिए हर शाम घर लौटते समय उनके साथ एक दो दोस्त ज़रूर ही चले आते हैं. मेरी मां इस बात को जानती है और एक्स्ट्रा खाना तैयार रखती है। लेकिन होता यह है कि हम ज्यों ही खाना खाने बैठते हैं, उनका एकाध दोस्त और आ धमकता है । मां दाल में पानी मिलाकर तेजी से रोटियां सेंकने जुट जाती है. ऐसे में अन्नपूर्णा का धर्म निभाते हुए स्वाभाविक है कि थोडी देर हो जाती है
लेकिन अंकल जी, इतनी देर में पापा चिल्लाने लग जाते हैं ” बेवकूफ औरत ! तुम दिन भर खाली पडी करती क्या हो ? अरे शास्त्रों तक में लिखा है कि अतिथी तो देव होते हैं। मेरा घर सोने की चिडिया है, फिर भी हम भूखे ? सुबह उठते ही तुम्हे तलाक नहीं दिया तो मेरा नाम भी राम औतार नहीं “
तलाक का नाम आते ही विपक्ष, यानि हमारे सामने वाले घर से जवान कन्या जिसका कहीं रिश्ता नहीं हो रहा, लिपस्टिक लगा कर चीनी मांगने के बहाने पिताजी को ‘शक्ल दिखाने आ जाती है और इशारे से जता देती है कि राम दुलारी को तलाक दो तो हमारा ख्याल ज़रूर रखना ज़रूर रखना जी “
अंकल जी, माफ करना, बात तो सरकार की हो रही थी
सरकार बेचारी साडी लपेटकर, सुहागन बिंदी लगाकर रोटियां सेंकने बैठती है तो ये मेरे बाप के दोस्त चले आते हैं, चोथी रोटी पर मेरा बाप चिल्लाता है “ 120 नहीं, 121 करोड का खाना तैयार करो.” यह सुनते ही मां के हाथ पैर फूल जाते हैं . चार रोटियों का आटा गुंथता ही है कि मेरे बाप की आवाज़ आती है “ राम दुलारी, अब 122 करोड का खाना . मां दाल में पानी डालती है कि मेरा बाप फिर चिल्लाता है“ राम दुलारी,123 करोड और फिर 124..125…126.”
अंकल ऐसे में तलाक तो तय है.
आप भी मानेंगे कि सामने वाली छमकछल्लो भी मेरे बाप जैसे मिलनसार’आदमी से ‘शादी करके चार ही दिन इतरा पाएगी, फिर तलाक तो उससे भी होकर ही रहेगा . अंकल मैं तो कहता हूँ कि चाहे कितनी भी चुस्त औरत मेरी मां बन ले, मेरे बाप से ‘शाबासी नहीं ले पाएगी.कसूर मेरे बाप का भी नहीं, दुनिया में आए हैं तो मिलनसार तो होना ही पडता है.
ऐसे में कोई जब मुझसे पूछता है ” मुन्ना राज़ा, तुम किसके बेटे हो, मम्मी के या पापा के ?“
तो मैं ज़ोर से हंसकर ताली बज़ाता हूं और कहता हूं “ मम्मी का, क्योंकि मेरा कोई बाप नहीं है “
लेकिन अंकल,मैं तो ‘शुरू में ही कह चुका कि दे‘श के 125 करोड लोगों को पिता समान मानने को मन तो नहीं करता पर लोग एहसास करा ही देते हैं कि वे मेरे पिता समान ही नहीं बल्कि हैं ही मेरे बाप
अंकल मेरे इन बापों का कुछ हो सकता है?
आपका अपना बच्चा
मन का सच्चा
अकल का कच्चा
– प्रदीप नील
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